जब कश्मीर से कश्मीरी पंडित पलायन कर गये थे तब भी श्रीनगर को ना छोड़ने वाले धनराज मल्होत्रा की इतवार के रोज मौत हो गयी ,धनराज श्रीनगर के महाराज में अपने बेटे भारत मल्होत्रा के साथ रह रहे थे ,लेकिन बुडापे के दिनों में बेटे ने बाप को वो सहारा नही दिया जिसकी उम्मीद हर बाप को होती है .
धनराज के पडोसी मंजूर अहमद सोफी ने कहा “हम उनके पडोसी है और उनका दाह संस्कार के लियें साजो सामान इकट्टा करना हमारी ज़िम्मेदारी है
धनराज के भतीजे दीपक मल्होत्रा ने कहा कि उनके पिता तिलक राज मल्होत्रा को 13 मार्च 1993 को अज्ञात लोगो ने गोली मार दी थी लेकिन हमने घाटी नही छोड़ा .
उधर मल्होत्रा के एक और पडोसी बशीर ने कहा कि उन्होंने जब दुसरे पंडित घाटी छोड़ रहे थे उन्होंने रुकने का इरादा किया इस लियें इन लोगो की देखभाल करना हमारी ज़िम्मेदारी है
रियाज़ अहमद बन्दारी और यासिर जीलानी इन दो कश्मीरी नौजवानों ने उनके दाह संस्कार के लियें लकडिया को उपलब्द कराया और बाकी कश्मीरी मुसलमानों ने दुसरे रीती रिवाज़ के लियें मिलकर चंदा किया .
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