जिस घर में दो बच्चे सो रहे हों, उसमें खिड़की से पेट्रोल डालकर आग लगा देने का विरोध करने के लिए अगर सिर्फ दलित आगे आते हैं, तो भारत का राष्ट्र बनना अभी बाकी है. इस मायने में भारत को परस्पर घृणा करने वाले जातीय, धार्मिक समूहों और गिरोहों का जमावड़ा कहना होगा.
अगर हमारे सुख, दुख और सपने साझा नहीं हैं, तो हम किस बात के राष्ट्र हैं. क्या हम एक दूसरे से नफरत करने वाले समूह हैं जो इतिहास और राजनीति के संयोग से एक भौगोलिक क्षेत्र में रह रहे हैं?
विरोध कीजिए मासूमों की मौत का और साबित कीजिए कि हम नागरिक हैं और इंसान हैं. इस घटना को दलित मुद्दा बनने से रोकिए.
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