न्याय के लिए संघर्ष कर रहे भगाना (हरियाणा) के धर्मान्तरित अनुसूचित जाति के लोगों को कल दिल्ली पुलिस ने लठिया के जंतर-मंतर से उठा दिया था. आज वे फिर धरना-स्थल पर लौट आये हैं. दिल्ली पुलिस पर केंद्र सरकार का नियंत्रण है. मामला साफ़ है कि अब आप दलित-हिन्दू नहीं रहे मुसलमान हो गए हैं तो इस कारण राष्ट्र की नज़र में विरोध-प्रतिरोध करने योग्य भी नहीं बचे हैं. संभव है कि वे कहना चाह रहे हों कि चुपचाप सवर्ण हिंदुओं के अत्याचार सहें , हिन्दू बने रहें और न्याय न माँगें देश में मनुस्मृति क़ानून लागू है. भगाना काण्ड पीड़ितों के धर्मान्तरण वाली किसी भी फ़ेसबुक ख़बर पर किये गए कमेन्ट देख लीजिये वे सब अश्लील, गालीनुमा और अनुसूचित जाति के लोगों का अपमान करने वाले हैं. एक द्विज व्यक्ति की टिपण्णी थी 'न्याय नहीं मिला तो अपनी बहन-बेटियों को GB रोड पर बिठा देते मुसलमान क्यों हो गए'. यह हमारा राष्ट्रवाद है और ऐसे हैं हमारे राष्ट्रवादी ! दलितों पिछडों के सवर्ण हिंदुत्व के ट्रैप में फँसने का यही हश्र होना भी चाहिए. जैसे हर-हर ओबीसी-घर-घर ओबीसी के जाल में फँसकर पिछड़ों ने संसद में ओबीसी सांसदों की संख्या पिछले 20 सालों में सबसे कम करा ली. दलितों-पिछड़ों को यह समझना चाहिए कि हिंदुत्व का राग बजाने वाला मृदंग उनकी खाल खींचकर मढ़ा गया है. आदिवासियों को नक्सलवादी घोषित किया जा चुका है, मुसलमान तो ख़ैर वैश्विक स्तर पर आतंकवादी प्रचारित कर दिए गए हैं, बचे हैं दलित-पिछड़े उनको चेत जाना चाहिए. जातिवादी होने का आरोप उन पर पहले ही लग चुका है. विशेषकर पिछड़ों को ये ध्यान रखना चाहिए कि भारत में मुसलमानों और दलितों के बाद उन्हीं का नंबर आता है. यह महज संयोग भी नहीं हो सकता कि जाति-जनगणना के आँकड़ों की माँग के लिए लालू जी ने जिस दिन बिहार बंद किया, गुरदासपुर में उसी दिन सुबह तड़के ही आतंकवादी हमला हो गया....
लेखक: अर्श संतोष की कलम
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