(दंगों को छोड़कर) गुजरात यक़ीनन एक शांतिप्रिय राज्य है। पिछले एक वर्ष से गुजरात में रहकर मैंने स्वयं यहाँ की शांति को अनुभव किया है। इस समय जल रहा है, सुलग रहा है। मीडिया सेंसरशिप की खबरें भी सुनाई दे रहीं हैं। कर्फ़्यू है। स्कूल बंद हैं। तनाव है। लेकिन गुजरात का विकास मॉडल एक छलावा है, लाखों की संख्या में पटेलों ने एकत्र होकर यह बता दिया है। आंदोलन के प्रमुख नेता सरकार के मंत्रियों के पुत्र हैं। हार्दिक पटेल को अभी आरक्षण के पेंचो-ख़म नहीं मालूम हैं। उनकी उम्र भी उतनी नहीं है। ओबीसी का आरक्षण एक मरीचिका के सिवाय कुछ नहीं है विशेषकर उस समय जब निजीकरण का सुरसा मुँह खुला हुआ है। ओबीसी की इस भीड़ में पचास-साठ लाख पटेल कहाँ खो जायेंगे उन्हें पता भी न चलेगा। इसलिए हार्दिक बाबू को चाहिए कि वे जातिगत जनगणना के आँकड़ों की माँग करें। यदि सच में आरक्षण चाहते हैं तो आबादी के सापेक्ष आरक्षण की माँग करें तथा विशेष प्रावधान के लिए आवाज़ उठाएँ। संविधान में ऐसे उपबंध हैं। अगर वे ये सब किए बगैर ओबीसी में आरक्षित होना चाहते हैं तो केवल अपने समुदाय को छल रहे हैं। यह सब ड्रामा आरक्षण खत्म करने की साजिश भी हो सकती है इसलिए ओबीसी जनता का सजग रहना भी ज़रूरी है। अगर यह आंदोलन सच्चा है तो गुजरात भाजपा की जड़ों में मट्ठा पड़ चुका है। गुजरात में पटेलों की अनुमति के बिना कोई भी सरकार नहीं बन सकती।
लेखक: अर्श संतोष की कलम
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