मुसलमानों का योग का बहिष्कार करना जायज़ है. योग को धार्मिक आधार पर किसी की संस्कृति पर थोपना सांस्कृतिक फासीवाद है. एक पाँच वक़्त का नमाज़ी दिन भर में पाँच बार योग ही करता है. मुहम्मद साहब ने इसे इबादत के साथ वर्ज़िश कहा है. मैंने कभी किसी पाबंद नमाज़ी को तुंदियल नहीं देखा लेकिन हिंदू पंडों की मोटी-लटकती तोंद ही उनकी लुटेरी धार्मिकता की पहचान है.
योगी आदित्यनाथ जैसे कुंठित उग्र हिंदुत्ववादी गुंडे केवल गोरखपुर में ही फड़फ़ड़ कर सकते हैं. गोरखपुर के बाहर इनकी कोई झस-पुटास नहीं है. इस्लाम की यूनिवर्सल स्वीकृति है. उसमें सार्वभौमिक भाईचारा है. इस्लाम की भाषा अरबी संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा है. हिंदुओं में ऐसा कुछ नहीं है उन्हें कहीं डूब मरना चाहिए. एक सवर्ण हिंदू की सारी धार्मिकता अपने धर्म की निम्न जाति के लोगों के दमन से ही तुष्ट होती है. अच्छा होगा यदि इन्हीं लुटेरे तुंदियल पंडों को योग कराया जाय. ऊधौ जोग जोग हम नाहीं !
By: Arsh Santosh
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