जकार्ता/मॉन्गदौ। म्यांमार ने कई दिनों से समुद्र में फंसे हुए रोहिंग्या मुसलमानों में से 700 को बुधवार को बचा लिया। ‘बोट पीपुल’ के नाम से पहचाने जाने वाले रोहिंग्या शरण लेने के लिए छोटी-छोटी नावों में अलग अलग देशों में जाते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार अब भी करीब 2,000 से ज्यादा लोग समुद्र में फंसे हैं।
अमेरिकी विदेश राज्य मंत्री एन रिचर्ड ने जकार्ता में म्यांमार से कहा है कि वह इन्हें अपना नागरिक मान कर पासपोर्ट जारी करे। ताकि इन्हें भी म्यांमार के अन्य नागरिकों की तरह सुविधाएं मिल सकें। लेकिन म्यांमार का कहना है कि हो सकता है, ये लोग बांग्लादेश से आए हों। शुक्रवार से अंडमान सागर में छोटी सी नाव में फंसे हुए 727 लोगों को म्यांमार की सेना बचाकर किनारे ले आई। इन्हें म्यांमार के पश्चिमी तटीय प्रांत रकेन में रखा गया है। इससे पहले ऐसी ही नौकाओं में पहुंचे करीब 4,000 रोहिंग्या इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड के तटों पर उतर चुके हैं।
नेता वोट बैंक में फंसे
म्यांमार में नवंबर में चुनाव हैं। वहां के राजनेता चुनाव जीतने की फिराक में वोट बैंक पर नजर रखे हुए हैं। रोहिंग्या चूंकि नागरिक ही नहीं हैं, इसलिए वोट भी नहीं दे सकते। इसलिए राजनेता रोहिंग्या समस्या से फिलहाल खुद को दूर ही रख रहे हैं। मुख्य विपक्षी नेता और नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की भी रोहिंग्या मामले पर खामोश हैं।
कौन हैं रोहिंग्या
रोहिंग्या को इंडो आर्य प्रजाति का माना जाता है। ये म्यांमार के रकेन प्रांत के मूल निवासी हैं। ये रोहिंग्या भाषा बोलते हैं। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि ये मुस्लिम हैं और म्यांमार में ब्रिटिश शासन के समय बंगाल से आए थे। कुछ लोग 1948 में म्यांमार की आजादी के बाद और कुछ 1971 में बांग्लादेश युद्ध के बाद आए। म्यांमार में करीब 11 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। जनरल ने विन की सरकार ने 1982 में इन्हें म्यांमार का नागरिक मानने से इनकार कर दिया था। तब से ये बिना नागरिकता के भटक रहे हैं।
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