रात का वक़्त है और मैं कोलकाता की मुख्य सड़क से निकल रही एक गली में हूं. यह इस वक़्त भी लोगों से भरी है.
गली के दोनों तरफ़ औरतें खूब सारा मेकअप करके खड़ी हैं. ज़्यादातर ने भड़कीली साड़ियां पहन रखी हैं लेकिन कुछ ने स्कर्ट और चुस्त कपड़े भी पहन रखे हैं.
ये दृश्य है दुनिया की सबसे बड़ी देह मंडी सोनागाछी का और ये औरतें सेक्सवर्कर हैं जो अपने ग्राहकों का इंतज़ार कर रही हैं.
गरीबी
यहां अंधेरी तंग गलियां हैं, सीवेज की बदबू आती रहती है. भारत के ज़्यादातर सेक्सवर्कर बेहद ग़रीबी में जीते हैं.
रोज़ प्रति ग्राहक 300 रुपए कमाने वाली इन औरतों को अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दलालों और पुलिस को देना पड़ता है.
अगली सुबह मुझे इस गली की एक इमारत में जाने का मौक़ा मिला, जहां ये औरतें रहती और काम करती हैं.
छोटे से कमरे में बैठीं विशाखा लस्कर चूल्हे पर मछली तल रही हैं.
महज़ 14 साल की उम्र में विशाखा को गांव की एक महिला शहर दिखाने लाई और कोठे पर पहुंचा दिया, जहां से वह कभी निकल नहीं सकी.
अधिकार
विशाखा का कहना है, "इसी काम से मेरी कमाई होती है. लेकिन हमें बहुत परेशान किया जाता है. ख़ासतौर से पुलिस के हाथों. अगर हमें काम का लाइसेंस मिल जाए तो कम से कम वह रुक जाएगा. हम लड़ सकेंगे."
भारत में लाखों यौनकर्मी अपने पेशे को क़ानूनी मान्यता देने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
इस मांग के साथ सैकड़ों महिलाओं ने कोलकाता की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन भी किया.
देश में इस पेशे से 30 लाख से ज़्यादा महिलाएं जुड़ी हैं.
भारत में देह व्यापार गैरक़ानूनी नहीं है लेकिन यौन संबंध के लिए लुभाने की इजाज़त नहीं. ऐसे में महिलाएं खुद को क़ानून की लकीर के दूसरी ओर खड़ा पाती हैं.
तस्करी
मोर्चे का नेतृत्व कर रही सीमा फोकला देश में देहकर्मियों की सबसे बड़ी संगठन दुर्वार की अध्यक्ष हैं.
उनका कहना है, "अगर हमारा पेशा क़ानूनी बन जाए तो हमें सम्मान की नज़र से देखा जाएगा, लोग हमें परेशान करना छोड़ देंगे. हमारे बच्चों को नीचा नहीं दिखना होगा."
इसे पेशे को बंद करना और यौनकर्मियों का पुनर्वास करना सरकार के बूते नहीं है.
ये औरतें चाहती हैं कि उनके काम को श्रम का दर्जा मिले क्योंकि उनका मानना है इससे उन्हें समाज और स्वास्थ्य के मोर्चे पर फ़ायदा होगा.
इस पेशे को क़ानूनी दर्जा देने में दिक़्क़तें हैं. इससे मानव तस्करों को खुली छूट मिल सकती है.
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की रंजना कुमारी कहती हैं, "आप तस्करों को नहीं रोक सकते. वह बेहद कम उम्र के लड़के-लड़कियों को लाकर वेश्यालयों में बेच देते हैं."
अपराधी
वे इसके बजाय देह की ख़रीद-फ़रोख्त को अपराध घोषित करने की सलाह देती हैं.
उनका कहना है,"जैसे ही हम यह करेंगे, बाज़ार सिमट जाएगा. मांग घटेगी और धीरे-धीरे हम उनकी मदद कर सकेंगे जो पहले से वहां मौजूद हैं. ख़ासतौर से बेहद कम उम्र की महिलाएं जो वहां हैं. "
कोलकाता के सोनागाछी में ही केवल रोज़ औसतन सात-आठ महिलाएं इस धंधे में उतरती हैं.
ऐसे में यह सवाल एकदम वाजिब है कि क्या सचमुच कभी उन सबका पुनर्वास हो सकेगा या वे सिर्फ़ एक अपराधी बनकर रह जाएंगी.
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