मोमिन अल्लाह के हर फरमान को अपनी ड्यूटी समझ उसकी पालना करता है। उसका तो यही भरोसा होता है कि अल्लाह के हर फरमान में ही उसके लिए दुनिया और आखिरत की भलाई छिपी है,चाहे यह भलाई उसके समझ में आए या नहीं। यही सोच एक मोमिन लगा रहता है अल्लाह की हिदायत के मुताबिक जिंदगी गुजारने में। समय-समय पर हुए विभिन्न शोधों और अध्ययनों ने इस्लामिक जिंदगी में छिपे फायदों को उजागर किया है। नमाज को ही लीजिए। साइंसदानों ने साबित कर दिया है कि नमाज में सेहत संबंधी कई फायदे छिपे हुए हैं। नमाज अदा करने से सेहत से जुड़े अनेक लाभ हासिल होते हैं। *रमजान के दौरान पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज तरावीह भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। नमाज से हमारे शरीर की मांसपेशियों की कसरत हो जाती है। कुछ मांसपेशियां लंबाई में खिंचती है जिससे दूसरी मांसपेशियों पर दबाव बनता है। इस प्रकार मांसपेशियों को ऊर्जा हासिल होती है।
रोजा खोलने यानी इफतार से कुछ समय पहले खून में ग्लूकोज और इन्सूलिन की मात्रा बहुत कम होती है। लेकिन इफतार के दौरान खाने-पीने के एक घंटे बाद शरीर में ग्लूकोज और इन्सूलिन का स्तर बढऩे लगता है। लीवर और मांसपेशियां खून में ग्लूकोज को फैलाते हैं। इस प्रकार इफतार के एक और दो घंटे के बाद खून में ग्लूकोज की मात्रा उच्च स्तर पर होती है। ठीक इस बीच शुरूआत होती है तरावीह की नमाज की। तरावीह की नमाज अदा करने से ग्लूकोज की अधिक मात्रा यानी एक्सट्रा कैलोरी कम हो जाती है।
शारीरिक और मानसिक मजबूती तरावीह की नमाज अदा करने से शरीर फिट बना रहता है और फिटनेस में बढ़ोतरी होती है। दिल और दिमाग को सुकून हासिल होता है। तरावीह की नमाज के दौरान की गई एक्सट्रा कसरत से नमाजी की सहन शक्ति में बढ़ोतरी होती है और उनमें लचीलापन आता है। पांच बार नमाज अदा करना तीन मील प्रति घण्टे जॉगिंग करने के समान है। पांच बार नमाज अदा करने से शरीर पर बिना किसी दुष्प्रभाव के वे ही अच्छे नतीजे सामने आते हैं जो तीन मील प्रति घण्टे के हिसाब से जॉगिंग करने पर आते हैं। हाल ही में अमरीका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में १९१६ से १९५० के दौरान अध्ययन करने वाले १७००० स्टूडेंट्स का अध्ययन किया गया तो यह बात सामने आई कि तीन मील प्रतिदिन जॉगिंग या इसके बराबर एरोबिक कसरत करने वाले स्टूडेंट्स की मौत की दर कसरत नहीं करने वाले उनके सहपाठियों की तुलना में एक चौथाई ही थी। जो लोग रोजाना तीस मिनट जॉगिंग, साइक्लिंग, तैराकी करते है,वे सप्ताह में लगभग २००० कैलोरी जला देते हैं।
पांचों वक्त की नमाज और तरावीह की नमाज अदा करने से फ्रेक्चर के जोखिम कम हो जाते हैं। नमाज ना केवल हड्डियों के घनत्व को बढ़ाती है बल्कि जोड़ों में चिकनाई और उनके लचीलेपन में भी इजाफा करती है। बुढ़ापे में चमड़ी भी कमजोर हो जाती है और उसमें सल पड़ जाते हैं। शरीर की मरम्मत की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। साथ ही रोगों से लडऩे की क्षमता में भी कमी हो जाती है। बुढ़ापे में शारीरिक गतिविधि कम होने से इन्सूलिन का स्तर भी कम हो जाता है। शरीर के विभिन्न अंग अपने काम में कमी कर देते हैं।
इन्हीं कारणों के चलते बुढ़ापे में दुर्घटनाएं और रोग ज्यादा होते हैं। नमाज से मांसपेशियों में ताकत, खिंचाव की शक्ति और लचीलापन बढ़ता है। साथ ही सांस और रक्त प्रवाह में सुधार होता है। इस तरह हम देखते हैं कि नमाज और तरावीह अदा करते रहने से बुढ़ापे में जीवन की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। बुढ़ापे में कई तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। यही नहीं तरावीह की नमाज से सहनशक्ति,आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता में बढ़ोतरी होती हैं।
हल्की कसरत के लाभदायक प्रभाव देखा गया है कि शरीर के अंग काम में ना लाने की वजह से पर्याप्त प्रोटीन मिलने के बावजूद शिथिल हो जाते हैं। जबकि नमाज और तरावीह अदा करने से शरीर के सभी अंग एक्टिव बने रहते हैं। इस तरह नमाज से ना केवल सहनशीलता बढ़ती है बल्कि थकावट भी दूर होती है। तरावीह की नमाज अदा करने से सांस क्रिया में भी सुधार होता है। नमाज के दौरान गहरी सांस लिए जाने से वाहिकाओं में हवा के लिए ज्यादा जगह हो जाती है। ऐसे में सांस लेने में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक ग्रहण करने से नमाजी अच्छा महसूस करते हैं। यही नहीं नमाज शरीर के वजन और केलोरी को नियंत्रित रखती है। अधिकाश लोग वाकिफ हैं कि कसरत हदय की कॉरोनरी बीमारी को रोकती है। यही नहीं कसरत डायबिटीज,सांस की बीमारियों,ब्लड प्रेशर में भी फायदेमंद होती है।
– इब्राहिम बी. सैयद, अध्यक्ष, अंतरराष्टीय इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन लुइसविले, अमरीका
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