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नाना पाटेकर: तकलीफों से जूझते किसानों का 'सुपरहीरो'

वैसे तो पूरा देश ही जानता था कि महाराष्ट्र के किसान सूखे और कर्ज से मजबूर होकर आत्महत्या कर रहे हैं, लेकिन बहस-चर्चा और कभी-कभी थोड़ी तकलीफ-जरा से अफसोस से आगे ज्यादातर लोग बढ़े ही नहीं। फिल्मों में एक कहानी होती है। लोगों की परेशानी दूर करने एक दिन एक हीरो आता है और तकलीफ से रोते-बिलखते लोगों की मुश्किलें आसान बनाता है। हिंदी फिल्मों का दर्शक होने के नाते हमें ऐसी फिल्मों का लंबा अनुभव है। हीरो होता ही वही है जो औरों की मदद करे। हीरो वही होता है जो मुश्किलें आसान कर दे।

ऐसा नहीं कि हीरो सिर्फ फिल्मों में होते हैं। इस दुनिया में जहां आप और हम रहते हैं, वहां हमारे आसपास भी जीते-जागते हीरे रहते हैं। नाना पाटेकर की फिल्में तो आपने देखी होंगी और शायद पसंद भी की होंगी, लेकिन तिल-तिल कर मरते किसानों ने लिए उन्होंने कुछ ऐसा किया है जिसे जानकर आप यकीन करने लगेंगे कि हीरो असल में भी होते हैं। आपकी और हमारी तरह जीते-जागते। आगे की स्लाइड्स में पढ़े और जानें नाना पाटेकर की इस 'हीरोगिरी' के बारे में...

इंसान वही है जज्बातों से खाली ना हुआ हो। हीरो वही है जिसे औरों की तकलीफें देखकर चुप बैठना ना आता हो। नाना पाटेकर और मकरंद अनसपुरे ने सूखे और कर्ज की मार से मजबूर होकर आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवार की मदद का बीड़ा उठाया है। ऐसा नहीं कि उन्हें किसी ने यह जिम्मेदारी दी, बल्कि उन्होंने खुद आगे बढ़कर यह जिम्मेदारी ली। सच है कि पैसा बहुतों के पास होता है, लेकिन ऐसा दिल जो अपने पैसे से औरों की जरूरतें पूरी करे बहुत कम के पास ही होता है। हर किसी के लिए कहां मुमकिन हो पाता है औरों की तकलीफ में खुद रो देना...

मराठवाड़ा और विदर्भ में इस साल पड़ा सूखा पिछले सभी सालों से ज्यादा भीषण है। पानी की हर बूंद कीमती है और इस बूंद की कीमत चुकाने के पैसे किसानों के पास नहीं हैं। मवेशी मप रहे हैं, खेती सूख गई है। आसमान का बादल का एक कतरा भी नहीं मंडराता कि कुछ उम्मीद लौटे। ऐसे में नाउम्मीद किसान एक के बाद एक फसल के साल-दर-साल बर्बाद होने का शोक मना रहे हैं। जो बर्दाश्त नहीं कर पा रहे वे आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसी हालत में नाना पाटेकर और मकरंद ने मिलकर इन किसानों की मदद करने की ठानी है। दोनों ने लातूर और उस्मानाबाद के 113 किसान परिवारों को 15-15 हजार रुपये का चेक दिया...

स तस्वीर में दिख रहे हर चेहरे की अपनी एक कहानी है। हर किसी ने अपने किसी को खोया है। इंसान की मौत एक बात है और जिंदगी-मौत के बीच उम्मीदों का मर जाना दूसरी बात है। इन सबने अपने भी खोए और उम्मीदें भी खो दीं। विदर्भ और मराठवाड़ा के ज्यादातर गांव ऐसे हैं जहां आपकी और हमारी थाली में आने वाली रोटी को उपजाने वाले हाथ भूखे सोने को और थक कर आत्महत्या करने को मजबूर हैं। नाना पाटेकर और मकरंद अनसकर ने राजनेताओं से अपील की है वे राजनैतिक विरोध को ताक पर रखकर किसानों की मदद के लिए आगे आएं...

हमारी-आपकी तरह दिखने वाले इन दोनों की मिट्टी में कुछ तो अलग था। 113 किसानों की मदद करने तक का ही लक्ष्य नहीं है इनका। दायरा बहुत बड़़ा है। इन्होंने तय किया है कि ये मिलकर कम-से-कम 700 किसान परिवारों की मदद करेंगे...

तकलीफ में हों तो तकलीफें एकाएक खत्म नहीं हो जातीं, लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसा हो जो एकबारगी हंसा दे तो लगता है खजाना हाथ आ गया हो। किसी के साथ बैठकर हंसना और किसी के पास हंस लेना इतना भी मामूली नहीं। कुछ खास होता है ऐसे पलों में। इस तस्वीर में जो हंसी दिख रही है उसमें सुकून का एक हल्का इत्मीनान तो यकीनन झांक रहा है...

कार्यक्रम में नाना और मकरंद ने सिर्फ चेक ही नहीं बांटे, बल्कि हर एक के पास जाकर उनसे बात भी की। कहीं किसी के साथ हंसे, तो कहीं किसी के साथ रोए। कहीं किसी को थपकाया, तो कहीं किसी को सहलाया। किसी बच्चे को प्यार की थपकी दी तो उसकी मां को अपनेपन और सांत्वना से चुप कराया...

हाथ में चेक लिए खड़ी इस महिला के लिए 15 हजार की रकम इस वक्त कितना मायने रखती है इसकी परख उन्हें ही होगी जो उसके जैसी हालत में होंगे। जहां से मदद मांगते रहे वहां से मदद नहीं आई और जहां से कोई उम्मीद थी वहां से आई भी तो इस तरह आई। एक-दो नहीं, बल्कि पूरे 113 परिवारों ने यह तसल्ली साझा की। जल्द ही, कई और परिवारों को भी नाना-मकरंद की ओर से मदद दी जाएगी...

महिला के हाथ में मदद के तौर पर दिया गया चेक है और बच्चे के हाथ में है बिस्किट का एक पैकेट। किसे किस वक्त क्या मदद चाहिए होती है, इसकी समज हर किसी में नहीं होती। कोई रोए तो उसके आंसू की नमी खुद की आंखों में महसूस करना हर किसी के बस की बात नहीं होती। अपनी आराम और सहूलियत की दुनिया से थोड़े साधन निकाल कर किसी जरूरतमंद को दे सके ऐसी नियत हर किसी में नहीं होती। जिनमें यह नीयत, ऐसा माद्दा होता है उन्हें ही हीरो कहते हैं। कैमरा और सिनेमा के पर्दे वाला हीरो नहीं, धूप-छांव झेलने वाला असल हीरो। नाना पाटेकर और मकरंद अनसपुरे ऐसे ही हीरो हैं...
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